Lingashtakam Lyrics with Meaning
Lingashtakam Lyrics Sanskrit with Meaning In Hindi English sung by S.P. Balasubrahmaniam, written by Shri Adi Shankara,
लिंगाष्टकम की रचना किसने की?
इस सुंदर लिंगाष्टकम की रचना किसने की, इसका श्रेय देने का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। हालाँकि, कई लोगों का मानना है कि यह श्री आदि शंकराचार्य द्वारा अष्टकम् लिखने के उनके काव्यात्मक तरीके को देखते हुए लिखा गया था और उस फलस्तिथि को भी देखता है जो उस के साथ मेल खाता है।
हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि यह श्रीआदि शंकराचार्य काम नहीं था और कहते हैं कि लिंगशक्तम उनकी तारीख से काफी पुराना है, और इसका श्रेय वे महा मुनि अगस्त्य को देते हैं।
Lingashtakam Lyrics in Hindi Fonts
श्लोक 01
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् |
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
श्लोक 02
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् |
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
श्लोक 03
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् |
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
श्लोक 04
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् |
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
श्लोक 05
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
श्लोक 06
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
श्लोक 07
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् |
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
श्लोक 08
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम्।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥
"प्राथना"
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ |
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ||
Lingashtakam Meaning Hindi Fonts
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् |
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
अर्थ:- जो ब्रह्मा, विष्णु और सबी देवगणों के इष्टदेव हैं, जी परम पवित्र, निर्मल, तथा सभी जीवों की मनोकामना को पूर्ण करने वाले हैं और जी लिंग के रूप में चराचर जगत में स्थापित हुए हैं, जो संसार के संहारक है और जन्म और मृत्यु के दुखो का विनाश करते अहिं ऐसे भगवान् आशुतोष को नित्य निरंतर प्रणाम है.
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् |
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
अर्थ:- भगवान सदाशिव जो मुनियों और देवताओं के परम आराध्य देव हैं, तथा देवो और मुनियों द्वारा पूजे जाते हैं, जो काम (वह कर्म जिसमे विषयासक्ति हो) का विनाश करते हैं, जो दया और करुना के सागर हैं, तथा जिन्होंने लंकापति रावण के अहंकार का विनाश किया था, ऐसे परमपूज्य महादेव के लिंग रूप को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ.
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् |
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
अर्थ:- लिंगमय स्वरूप जो सभी तरह के सुगन्धित इत्रों से लेपित हैं और जो बुद्धि तथा आत्मज्ञान में वुद्धि का कारण है, शिवलिंग जो सिद्ध मुनियों और देवताओं और दानवों सभी के द्वारा पूजा जाता है, ऐसे अविनाशी लिंग स्वरूप को प्रणाम है.
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् |
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
अर्थ:- लिंगरूपी आशुतोष जो सोने तथा रत्नजड़ित आभुषणों से सुसज्जित हैं, जो चारों ओर से सर्पों से घिरे हुए हैं, तथा जिन्होंने प्रजापति दक्ष (माता सती के पिता) के यज्ञ का विध्वस किया था, ऐसे लिंगस्वरूप श्रीभोलेनाथ को बारम्बार प्रणाम.
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
अर्थ:- देवों के देव जिनका लिंगस्वरूप कुंकुम और चन्दन से सुलेपित है और कमल के सुन्दर हार से शोभायमान है, तथा जो संचित पापकर्म का लेखा जोखा मिटाने में सक्षम है, ऐसे आदि-अन्नत भगवान शिव के लिंगस्वरूप को मैं नमन करता हूँ.
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
अर्थ:- जो सभी देवताओं तथा देवगणों द्वारा पूर्ण श्रधा एवं भक्ति भाव से परिपूर्ण था पूजित है, जो हजारों सूर्य के समान तेजस्वी है, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को प्रणाम है.
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् |
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ||
हिन्दी में अर्थ:- जो पुष्प के आठ दलों (कलियों) के मध्य में विराजमान है, जो सृष्टि में सभी घटनाओं (उचित-अनुचित) के रचियता हैं, और जो आठों प्रकार के दरिद्रता का हरण करने वाले ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को प्रणाम है.
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम्।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥
अर्थ:- जो देवताओं के गुरुजनों तथा सर्वश्रेष्ठ देवों द्वारा पूजनीय हैं, और जिनकी पूजा दिव्य-उद्यानों के पुष्पों से की जाती है, तथा जो परमब्रह्म है जिनका न आदि है और न ही अंत है ऐसे अनंत अविनाशी लिंगस्वरूप भगवान भोलेनाथ को मैं सदैव अपने हृदय में स्थित कर प्रणाम करता हूँ.
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ |
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ||
अर्थ:- जो कोई भी इस लिङ्गाष्टकम् को शिव या शिवलिंग के समीप श्रद्धा सहित पाठ करेगा उसको शिवलोक प्राप्त होता है तथा भगवान भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
Lingashtakam Lyrics in English Fonts With Meaning
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